अल-नीनो और ला-नीना की घटनाओं का भारतीय मानसून पर प्रभाव क्या है? स्पष्ट कीजिए।

अल-नीनो और ला-नीना प्रशांत महासागर में समुद्री सतह के तापमान में होने वाले असामान्य परिवर्तनों से उत्पन्न जलवायु घटनाएँ हैं। ये भारतीय मानसून को प्रभावित करती हैं, जो भारत की कृषि, जल संसाधन और अर्थव्यवस्था के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। इन घटनाओं का अध्ययन मौसम पूर्वानुमान और आपदा प्रबंधन के लिए आवश्यक है।

अल-नोनो का प्रभाव-

कमजोर मानसूनी हवाए – अल-नीनो के दौरान पूर्वी प्रशांत महासागर में गर्म पानी वैश्विक वायुमंडलीय परिसंचरण को बदलता है, जिससे मानसूनी हवाएँ कमजोर पड़ती हैं।

सूखे की स्थिति– भारत में विशेष रूप से उत्तर-पश्चिम, मध्य और दक्षिणी क्षेत्रों में कम वर्षा होती है. जिससे सूखा पड़ता है। जैसे 2015 का अल-नीनो सूखे का कारण बना ।

कृषि और अर्थव्यवस्था पर असर -कम वर्षा से धान, गेहूँ, गन्ना, दालें जैसी फसलों का उत्पादन घटता है, जिससे खाद्य मूल्य बढ़ते हैं और किसानों की आय प्रभावित होती है।

ला-नीना का प्रभाव-

मजबूत मानसून– ला-नीना में ठंडा समुद्री तापमान मानसूनी हवाओं को मजबूत करता है, जिससे सामान्य या अधिक वर्षा होती है।

बाढ़ का जोखिम – अत्यधिक वर्षा से गंगा, ब्रह्मपुत्र जैसी नदियों में उफान आता है, जिससे बिहार, असम, और उत्तर प्रदेश में बाढ़ की स्थिति बनती है।

कृषि और जल संसाधन– अच्छी वर्षा से फसल उत्पादन बढ़ता है और जलाशयों का जलस्तर सुधरता है, जो सिंचाई और पेयजल के लिए लाभकारी है।      जैसे – 2010 और 2021 में ला-नीना के दौरान अच्छी वर्षा हुई थी।

अलनीनो और लानीना भारतीय मानसून की अनिश्चितता को बढ़ाते हैं। अलनीनो सूखे और लानीना बाढ़ का कारण बनती है। इन घटनाओं की सटीक निगरानी और मौसम मॉडलिंग से कृषि योजना, आपदा प्रबंधन और जल संसाधन प्रबंधन में सुधार संभव है।

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