प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में भारत के केंद्रीय मंत्रिमंडल ने पांच नई शास्त्रीय भाषाओं को मान्यता देने को मंजूरी दे दी है: असमिया, बंगाली, मराठी, पाली और प्राकृत। यह निर्णय क्षेत्रीय भाषाओं को समर्थन देने और भारत की विविध भाषाई परंपराओं का सम्मान करने के लिए सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
शास्त्रीय भाषा की स्थिति की पृष्ठभूमि
शास्त्रीय भाषाओं की अवधारणा 12 अक्टूबर 2004 को शुरू की गई थी, जब तमिल यह प्रतिष्ठित दर्जा पाने वाली पहली भाषा बनी थी। तब से, संस्कृत, तेलुगु, कन्नड़, मलयालम और ओडिया जैसी अन्य भाषाओं को भी शास्त्रीय दर्जा दिया गया है।
नए परिवर्धन का महत्व
प्रधानमंत्री मोदी ने इन नई मान्यता प्राप्त भाषाओं की सुंदरता और सांस्कृतिक महत्व के बारे में बात की। उन्होंने कहा कि पाली और प्राकृत, विशेष रूप से भारत की आध्यात्मिक और दार्शनिक परंपराओं के लिए महत्वपूर्ण हैं, जिनका साहित्यिक इतिहास समृद्ध है। इन भाषाओं को जोड़कर सरकार देश की विविधता और सांस्कृतिक संपदा का जश्न मना रही है।
सांस्कृतिक विरासत संरक्षण
सरकार ने इस बात पर भी जोर दिया कि भारत की सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने के लिए शास्त्रीय भाषाएँ आवश्यक हैं। ये भाषाएँ विभिन्न समुदायों की ऐतिहासिक उपलब्धियों और सांस्कृतिक योगदान को प्रदर्शित करती हैं, जिससे भावी पीढ़ियों को भारत के अतीत को बेहतर ढंग से समझने में मदद मिलती है।
राजनीतिक प्रतिक्रिया और समर्थन
इस निर्णय की विभिन्न राजनीतिक नेताओं ने व्यापक रूप से प्रशंसा की है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे, असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा और केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान सभी ने इन भाषाओं के महत्व को मान्यता देने के लिए प्रधानमंत्री मोदी का आभार व्यक्त किया। उन्होंने बताया कि यह मान्यता उनके राज्यों और समुदायों के लोगों के लिए गर्व और खुशी की भावना लाती है।
भविष्य की भाषा नीति के लिए निहितार्थ
इस कदम से भारत में क्षेत्रीय भाषाओं के लिए और अधिक समर्थन को बढ़ावा मिलने की संभावना है, जिससे देश की समृद्ध भाषाई विविधता के प्रति अधिक समावेशी दृष्टिकोण को बढ़ावा मिलेगा। इससे भविष्य की पीढ़ियों के लिए भारत की सांस्कृतिक पहचान को संरक्षित करने में भी मदद मिलने की उम्मीद है।